जीवन परिचय 

कालिदास संस्कृत साहित्य के एक बहुत ही बड़े महान कवि और नाटककार थे | इन्हे कविकुलगुरु नाम से भी जाना जाता है क्योकि कवि जयदेव ने इन्हें इस नाम से पुकारे थे | उनका जन्म एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था | उनकी प्रचंड विद्वता की कोई तुल्यता नहीं की जा सकती है | कालिदास उज्जैनी नरेश महाराजा चन्द्रगुप्त या विक्रमादित्य के दरवारी कवि थे | इन्हे राजा विक्रमादित्य के नवरत्नों में से एक माना जाता है | इनके जीवन काल की कोई ठोस प्रमाण नहीं है, लेकिन राजा विक्रमादित्य के अनुसार माने तो उनका जीवन काल चौथी शताब्दी थी | 

रचनाएँ 

कालिदास की रचनाओं में भारतीय जीवन और दर्शन के विभिन्न रूपों का वर्णन मिलता है | उनकी छोटी-बड़ी लगभग 40 रचनाएँ  हैं |उनमे से ज्यादा रचनाएँ विवादों से घिरा हुआ है| लेकिन कुछ रचनाएँ है जो सभी इतिहासकार कालिदास की रचनाएँ मानते है | वो विभिन्न 7 रचनाएँ इस प्रकार है जो निर्विवाद है | 

काव्य ग्रन्थ - रघुवंशम, कुमारशंभवम, मेघदूतम, ऋतुसंहाराम
नाटक - अभिज्ञानशाकुंतलम, विक्रमोवर्शियम , मालविकाग्निमत्रं 

रघुवंशम में रघुकुल के 31 राजाओं का वर्णन है | जिसमे राजा दिलीप से शुरू होकर अग्निवर्ण तक शामिल है | 
कुमारशंभवम में देवी पार्वती के जन्म और किशोरावस्था एवं भगवान शिव के साथ उनके विवाह का वर्णन है | 
मेघदूतम में यक्ष बदल के माध्यम से अपने प्रेमी को सन्देश भेजने की कोशिश कर रहा है |

Our Great Poet Kalidsh
Our Great Poet Kalidsh


जीवन काल की घटनाएँ 
कालिदास जन्मजात बुद्धिमान नहीं थे | उनकी विद्वान बनने की घटना कोई परिकथा से कम नहीं है | कालिदास जब युवा थे तो उनका जीवन एक सामान्य लोगो के तरह ही थी | उनकी मूर्खता से पूरी तरह परिचित थे और उनकी इस मूर्खता पर लोग हंसी उड़ाते थे | 

कालिदास बचपन में जिस राज्य में निवास करते थे वहाँ के राजा की एक पुत्री थी जिसका नाम विद्योत्तमा था | विद्योत्तमा बहुत ही विद्वान और सुन्दर थी | उसके अंदर बहुत बड़ा अहंकार भी था | उसके सुंदरता पर कई बड़े-बड़े राजा व राजकुमार मुग्ध होकर विवाह तक का प्रस्ताव रखते  थे | लेकिन विद्योत्तमा प्रतिज्ञा कर राखी थी कि वह उसी व्यक्ति से शादी करेगी जो उनके साथ विद्वता की वाद-विवाद में अपने आपको सर्वोच्च साबित कर सके | 

सभी बड़े-बड़े राजा, महाराजा व राजकुमार आते और उनसे हार कर चले जाते और उनको मन में शर्मिंदगी महसूस होती | जब विद्योत्तमा के सामने कोई भी सर्वोच्च साबित न जो सका तो वे सब पंडितों ने मिलकर हार का बदला लेना चाहा | सबों ने मिलकर उनकी शादी एक बड़े मुर्ख से कराना चाहा | 

सभी विद्वानों ने मिलकर मुर्ख व्यक्ति की तलाश करने लगे | उसी समय कालिदास से रूप में उन्हें एक बालक मिला जो एक पेड़ पर चढ़कर उसी डाली को काट रहा था जिस पर वह स्वयं  बैठा था, और उसे इस बात का जरा भी एहसास नहीं था कि वह भी खुद डाली के साथ-साथ निचे गिर जायेगा | 

पंडित या विद्वानों ने जब उसे देखा तो सोचा इससे बड़ा मुर्ख कही और कोई भी नहीं मिलेगा| तभी विद्वानों ने उनसे बात किया और उन्हें राजी किया | पहले उन्हें सीखा दिया गया कि विद्योत्तमा के सामने कुछ नहीं बोलना है सिर्फ इशारो में ही कहना है |





फिर कालिदास को एक राजकुमार की तरह तैयार करके विद्योत्तमा के सामने लाया गया, और कहा गया कि आज इनका मौन व्रत है आप इनसे इशारों में बात कर सकते है | मै उस इशारों का व्याख्या करके आपको समझाता जाऊंगा | इस बात पर विद्योत्तमा राजी हो गई | 

फिर विद्योत्तमा ने उनसे इशारो में बात करना शुरू कर दी | पहले प्रश्न में विद्योत्तमा ने एक उंगली दिखाई तो कालिदास ने सोचा की वो मेरी एक आँख फोड़ देगी तो उसने दो उँगलियाँ दिखाया कि  मै तुम्हरी दोनों आँखें फोड़ दूंगा | फिर इसको विद्वानों ने व्याख्या किया कि आपकी एक उंगली का मतलब है कि ब्रह्मा एक हैं और यही सत्य है, और जवाब में इनकी दो उँगलिओं का मतलब है कि ब्रह्म और जीव दोनों सत्य है | यह सुनकर विद्योत्तमा बहुत खुश हुई |

दूसरे प्रश्न में विद्योत्तमा ने अपने हाथों की पांचों उँगलियाँ खड़ी की तो कालिदास ने सोचा की वो मुझे थप्पड़ मरना चाहती है तो कालिदास ने मुक्का दिखाया कि तुम मुझे थप्पड़ मरोगी तो मै तुम्हे मुक्का मारूँगा | फिर विद्वानों ने इन इशारों की व्याख्या किया कि आपके पाँचो उँगलियों को दिखने का मतलब है कि संसार पाँच तत्वों से बना है, लेकिन जवाब इनके मुक्का का मतलब है कि संसार पाँचों तत्वों के अलग-अलग रहने से नहीं बल्कि आपस में मिलने से बना है | इस प्रकार विद्योत्तमा कालिदास से बहुत खुश होकर शादी कर लेती है | 

कुछ दिनों तक तो सब ठीक चला परन्तु कुछ दिनों के बाद विद्योत्तमा को सारी सच्चाई मालूम हो गई तो उसने कालिदास को महल से निकाल दी | वह इस चोट को सहन नहीं कर सका और घोर तपस्या के लिए चल पड़ा | घोर तपस्या के बाद जब उनको फल नहीं मिला तो वे एक मंदिर में जाकर माता वीणावादिनी मूर्ति के सामने अपने सर को काटने के लिए तलवार उठाया तो उसी समय मंदिर में एक दिव्या ज्योति जल पड़ी | और उनको फल एक प्रचंड ज्ञान के रूप में मिला | फिर वे धीरे-धीरे विख्यात हो गए और सम्राट विक्रमादित्य केदरवार में नव रत्नो में शामिल हो गए | 



इन्हें भी जाने  कबीर दास